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इस्लाम में स्त्री ( Women in islam )

मुस्लिम महिलाओं के व्यवहार में और विभिन्न समाजों की महिलाओं के व्यवहार में व्यापक रूप से भिन्नता है क्योंकि, इस्लाम के प्रति उनका आज्ञापालन इसका एक प्रमुख कारक होता है जो अपने जीवन को अलग-अलग स्तर तक प्रभावित करता है और उन्हें एक तुल्य पहचान प्रदान करता है, जो उनको , विविध सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक मतभेदों से जोड़ने में मदद कर सकता है।[2]

इस्लाम के पवित्र पाठ क़ुरआन, हदीस, इज्मा, क़ियास, धर्मनिरपेक्ष कानून (इस्लाम से मान्य), फ़तवा (प्रकाशित राय जो बाध्यकारी नहीं हो।), आध्यात्मिक गुरु (सूफ़ी मत), धार्मिक प्राधिकारी (जैसे: Indonesian Ulema Council) वें प्रभावी तत्व हैं जिनसे इस्लामी इतिहास के क्रम में महिलाओं के सामाजिक, आध्यात्मिक और विश्व तत्व संबंधी स्थिति को परिभाषित करने में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया है

इस्लाम

एक एकेश्वरवादी धर्म है
इस्लाम (अरबी: الإسلام या मुस्लिमइब्राहिमी परंपरा से निकला एकेश्वरवादी धर्म है। इसकी शुरुआत उस समय हुई जब धरती का निर्माण हुआ। इस्लाम अल्लाह के अंतिम रसूलहजरत मुहम्मद के द्वारा मनुष्यों तक पहुंचाई गई ईश्वरीय किताब क़ुरआन की शिक्षा पर आधारित है, तथा इसमें हदीससीरत व शरीयत धर्मग्रन्थ हैं। इस्लाम में सुन्नीशिया व सूफ़ी समुदाय प्रमुख हैं। मुस्लिमों के धार्मिक स्थल मस्जिद तथा मज़ार हैं। इस्लाम विश्व का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है।
धार्मिक ग्रन्थ )


((
कुरान की एक पाण्डुलिपि में उसका प्रथम अध्याय।

मुसलमानों के लिये अल्लाह द्वारा रसूलों को प्रदान की गयी सभी धार्मिक किताबें वैध हैं। मुसलमानों के अनुसार क़ुरआन ईश्वर द्वारा मनुष्य को प्रदान की गयी अन्तिम धार्मिक किताब है। क़ुरआन में चार और किताबों का महत्व है :-
मुसलमान यह मानते हैं कि यहूदियों और ईसाइयों ने अपनी क़िताबों के सन्देशों में बदलाव कर दिये हैं।

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